( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटॉ ० )
हुशारी रखो , तन - मंदर भाई !
पूनसे मानुजको पाई || टेक ||
महा दुर्लभ है , इसका मिलजाना ।
कष्ट कर कोट कोट नाना ।
तभी ना पावे , मानवका जीना
मिले संजोग तभी पाना
मनुजका होता , समझो दिलमाँही ।
पूनसे ० ॥ १ ॥
सजीली आँखे , मुखड़ेकी लाली ।
चमक मस्तकपर उजियाली
ग्यानकी धारा , अंदर अलबेली ।
हाथ पैर और बलशाली
हाथिसम शोभे , क्यों खोता भाई !
पूनसे ० ॥ २ ॥
रतनकी खानी , मिलि है किस्मतसे
यार ! तू पूछ खूब ' जी ' से
कौल क्या क्या था , कबूल ईश्वरसे ?
कि ' मैं ना छोड़ेंगा तुमसे
किया था तुमने , क्यों भूला भाई !
पूनसे ० ॥ ३ ॥
साधले अब तो , कर नेकी जगमें ।
प्रभूके जा प्यारे ! पगमे
स्मरण कर उसका ,
रखो ख्याल जीमें ।
कहे वह तुकड्या क्या तुझमे
पता कर लेना , फेर समय नाहीं ।
पुनसे ० ॥ ४ ॥
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